16.12.10

खून के रिश्ते

खून के रिश्ते ही
कर देते हैं
खून रिश्तों का
या
पीते रहते हैं
खून
ताउम्र। 

मैं कब ( लघु कविता)

मैं कब

जी पाई

जीवन अपना

मां - बाप

सास - ससुर

पति

बेटे - बहुओं

पोते - पोतियों

के लिए

जीते - जीते ही

बुढा गई हूं

शायद परजन्म में

पुरुष रूप में

जी सकूं

जीवन अपना


11.10.10

जाने-माने रंगकर्मी, नाट्यकार, समाजसेवी और कवि शिवराम जी के आकस्मिक निधन से दुख तो गहरा हुआ लेकिन ये जानकर अच्छा लगा कि विभिन्न सँस्थाओँ ने उनके अधूरे कार्योँ को पूरा करने का सँकल्प लिया है। साथ ही कुछ पत्रिकाऍ उन पर विशेषाँक ला रही हैँ। कोटा के नाट्यमंच और सम्मेलन स्थल का नाम भी शिवराम जी के नाम पर होगा। यही उनको सच्ची श्रद्धाँजली होगी।

16.8.10

उस्ताद शायर पुरुषोत्तम "यकीन" की शायरी: बात होंठों पे चली आए ज़रूरी है क्यादिल में तूफ़ान...

उस्ताद शायर पुरुषोत्तम "यकीन" की शायरी:
बात होंठों पे चली आए ज़रूरी है क्यादिल में तूफ़ान...
: "बात होंठों पे चली आए ज़रूरी है क्यादिल में तूफ़ान ठहर जाए ज़रूरी है क्या कितने अंदाज़ से जज़्बात बयां होते हैंवो इशारों में समझ जाए ज़रूरी ..."

12.8.10

उस्ताद शायर पुरुषोत्तम "यकीन" की शायरी: दस

उस्ताद शायर पुरुषोत्तम "यकीन" की शायरी: दस: "महनत करना ज़िम्मा तेरा, ऎसा क्यूं ऎशपरस्ती उस का हिस्सा, ऎसा क्यूं बरसों पहले देश का नक्शा बदला था अपना घर वैसे का वैसा, ऎसा क्यूं मेरे ..."

5.6.10



        ग  ज़  

ग़म अगर दिल को मिला होता नहीं
ज़िंदगी में कुछ मज़ा होता नहीं


ज़ीस्त रह में है दिल तन्हा तो क्या
हर सफ़र में काफ़िला होता नहीं


हम सदा हालात को क्यों दोष दें
क्या कभी इंसा बुरा होता नहीं


मैं हमेशा साथ रहता हूँ तेरे
तू कभी मुझसे जुदा होता नहीं


एक इक पल बोझ-सा लगता है जब
जेब में पैसा-टका होता नहीं


सबकी आँखें पुरु कहाँ होती हैं नम
हर किसी दिल में ख़ुदा होता नहीं

31.5.10

मायावती की मालाओं के बहाने से

मायावती की मालाओं के बहाने.......

मायावती की मालाओ के बारे में काफ़ी कुछ लिखा- कहा जा रहा हैं. राजस्थान पत्रिका के २९ मई के सम्पादकीय में लिखा गया है कि उनके पास न कोई फ़ेक्ट्री, न शेयर बाज़ार में निवेश और न ही खेती-बाडी है फ़िर भी ३ साल में ३६ करोंड की कमाई. राजनीति में आने से पहले एक सरकारी स्कूल में पढाने वाली मायावती इतनी धनवान कैसे बन गई. मायावती को करोडों रूपए की दौलत की जरूरत भी क्या है राजनीति में रहने वालों के लिए जनता का स्नेह और विश्वास ही सबसे बडी पूंजी होती है.
दर असल सवर्ण और पुरुष मानसिकता वाले लोगों के गले ये बात उतर नहीं पा रही है कैसे एक दलित और वो भी स्त्री भारत के सबसे ज्यादा जनसंख्या वाले राज्य की मुख्यमंत्री बन गई और वो भी मात्र ५४ साल की उम्र में चौथी बार ! और अब जब मायावती कहती है वो भारत की प्रधानमंत्री क्यूं नही बन सकती ? तो इसमें गलत भी क्या हैं? और खुदा न खास्ता वो दिन भी आ जाये तो इन सवर्ण मानसिकता वालो की हालत क्या होगी. इस बात का अंदाज़ा लगा लीजिए.ऊपर जो भी आरोप लगाए गये है.. वर्तमान राजनीति के असली चहरे के मद्देनज़र सच होने बाद भी बचकाने लगते है. आज कौन ऎसा नेता है जो इन आरोपों से अछूता है. मायावती की माया सिर्फ़ यही है कि वो जो भी करती है.. सही या गलत.. ताल ठोक कर .. सब के सामने करती है. आज जब शादी- ब्याह तक में दूल्हे को नोटो की माला पहनाई जाती है तो एक मुख्यमंत्री को पहनाये जाने पर इतनी हाय- तौबा क्यूं.आज जब सब नेता मीडिया पर छाये रहते हैं वही मयावती मीडिया से कोसो दूर रहती हैं. सब को सर- मैडम कहलाने में अपनी शान दिखाई देती है वहीं मायावती खुद को "बहन" कहलवाना पसंद करती है. मयावती कलेक्टर बनना चाहती थी, मगर काशीराम ये कह्कर उन्हे राजनीति में ले आये कि ऎसे १० कलेक्टर तुम्हारे सामने सर झुकाए खडे रहेंगे. आज उनके राजनीति मे रहने से दलित खुद को ताकत वर महसूस कर रहा है. उसमे विश्वास जगा है. और यही कारण है कि दलित उन्हे भगवान की तरह पूजता है
.

11.1.09


ग़ज़ल
उनसे यूं ज़ुदा होकर फिर क़रीब आने में
देर लगती हैं आखिर फ़ासले मिटाने में


कितनी देर लगती है आसमां झुकाने में
लोग-बाग माहिर है उंगलियां उठाने में


किस तरह भला उसने ये जहां बना डाला
दम निकल गया मेरा अपना घर बनाने में


आजमाके तो देखूं एक बार उसको भी
जो य़कीन रखता हो सबको आजमाने में


तेरे सामने सारा रोम जल गया नीरो
तू लगा रहा केवल बांसुरी बजाने में


मुश्किलों से घबरा कर राह में न रुक जाना
ये तो काम आती हैं हौसला बढ़ाने में


दिन सुहाने बचपन के रुठ जायेंगे इक दिन
इल्म ये कहां था पुरु मुझको उस ज़माने में